सृष्टि रचयिता परमपिता ब्रह्मा के वरदान के फलस्वरूप स्वर्गविजेता बने असुरेश तारकासुर के अत्याचारों से त्रस्त होकर प्राण रक्षा हेतु सृष्टि में छिपते फिर रहे स्वर्ग असंख्य देवगणों के साथ क्या था | औघड़, वनवासी व पत्नी शोक में पत्नी की हवनकुंड में जली मृत देह लेकर सुधबुध खोकर संपूर्ण सृष्टि में विचरण कर रहे वैरागी नीलकंठ महादेव के पुत्र के माध्यम से तारकासुर के अत्याचारों से मुक्ति व स्वर्ग का राज्य पुनः प्राप्त कर लेने का विश्वास शब्द भेदी बाणों के ज्ञाता सुरासुर संग्राम में देवताओं के सहयोगी इक्ष्वाकुवंशी राजा रघु के अग्रज परम प्रतापी सूर्यवंशी महाराज दशरथ के साथ क्या था श्रृंगी ऋषि के निर्देशानुसार किए गए पुत्रकामेष्ठी यज्ञ के यज्ञ फलस्वरूप पुत्र प्राप्ति का विश्वास माता की आज्ञा व पिता के वचन बद्धता की विवषता के परिणामस्वरूप युवराज को दिए गए चौदह वर्ष के वनवास के समय मात्र ज्येष्ठ के सानिध्य हेतु पत्नि, परिवार व सगे संबंधियों को छोड़कर स्वप्रेरणा से वनवास स्वीकारने वाले शेषनाग के मानव रूप अनुज के साथ क्या था ?
क्षीर सागराधीश श्री हरि के अवतार अपने नरश्रेष्ठ ज्येष्ठ भ्राता राम की आत्मा होने का विश्वास मैथिल नरेश विदेहराज शीरध्वज की राजधानी जनकपुरी में स्वयंवर के समय देवी लक्ष्मी की मानव रूप जनकतनया राजकुमारी सीता के साथ क्या था स्वयंवर विजेता बन मैथिली को पाने प्रकाश शिन्दे ‘अबोध’ हेतु स्वयंवर में पधारे अनेकानेक गर्वित राजपुरूषों में से ऋषि विश्वामित्र के साथ स्वयंवर की शोभा देखने हेतु पधारे धीर, गंभीर, राजपुत्र सदृश्य, सुकुमार युवक द्वारा इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर देने वाले विष्णु अवतार परम ज्ञानी ऋषि परशुराम द्वारा उनके पूर्वजों को प्रदान किए गए पवित्र, अजेय और स्वयंवर विजेता बनने की लालसा लिए पधारे अन्य गर्वित, अभिमानी राजपुरूषों द्वारा हिला भी न सकने वाला शिव धनुष, पिनाक, उठा लेने का विश्वास संपूर्ण पृथ्वी का भार अपने मस्तक पर धारण करने वाले सहस्त्र फन धारी शेषनाग के मानवावतार व रघुकुलनंदन के स्वघोषित सेवक, आज्ञाकारी व समर्पित अनुज सौमित्र के साथ पंचवटी में क्या था चक्रपाणी भार्या व देवी लक्ष्मी की मानवरूप अपनी भातृजाया की रक्षा का विश्वास अनदेखी रामप्रिया को खोजने वानर राज सुग्रीव की आज्ञा से दक्षिण दिशा की ओर जाने वाले वानर दल के साथ दक्षिणी समुद्र तट पर खड़े वानर राज केसरी के नंदन को बाल्यकाल की प्रतिभाशाली शक्तियों का स्मरण कराने वाले सबसे वृद्ध रिक्ष्य राज जामवंत के साथ क्या था |
किष्किंधा के नव नरेश सुग्रीव के सेवक हनुमान द्वारा शतयोजन विस्तारित सिंधु लांघकर अपहृत बंदिनी सीता का समाचार लाने का विश्वास लंका की अशोक वाटिका में लंकेश की भय प्रदर्शन व आसुरी शक्तियों से त्रस्त बंदिनी असहाय रामवल्लभा के साथ क्या था सीतावल्लभ की लंका विजय व महर्षि विश्रवा व कैकसी के ज्येष्ठ पुत्र व देवताओं के सोपानों पर चढ़कर सिंहासन पर विराजमान होने वाले दशानन लंकेश के कारागार से मुक्ति का विश्वास चौदह वर्ष के वनवासोपरांत समस्त अयोध्यावासियों की इच्छा का सम्मान कर सर्वप्रिय राजा बने अयोध्या नरेश मर्यादा पुरूषोत्तम ज्येष्ठ दशरथनंदन के साथ क्या था असीम मान-सम्मान देने वाले प्रिय प्रजाजन के समक्ष उच्चतम आदर्श व मर्यादा की पराकाष्ठा रखने का विश्वास मथुरेश कंस के कारागार में बंदी असहाय वसुदेव व पितृव्य भ्राता कंस की किसी समय की प्रिय भगिनी देवकी के साथ क्या था सारथी भ्राता कंस के रथ पर विवाहोपरांत विदा होते समय की गई आठवें पुत्र के पराक्रम से बंधन मुक्त हो जाने की आकाशवाणी पर विश्वास गुरू के द्वारा धुनर्विद्या का ज्ञान देना अस्वीकार कर देने पर गुरू को आदर्श मान गुरू का पुतला बना स्वप्रेरणा से धुनर्विद्या का ज्ञान प्राप्त कर लेने वाले निषाद एकलव्य के साथ क्या था मात्र राजपुरूषों को ही शस्त्रविद्या का प्रशिक्षण देनेवाले गुरूग्राम निवासी गुरू द्रोणाचार्य के प्रशिक्षण बिना गुरू की शारीरिक अनुपस्थिति में भी गुरुभक्ति कर श्रेष्ठ धनुर्विद्या का ज्ञान प्राप्त कर लेने का विश्वास हस्तिनापुर नरेश महाराज शांतनु व पापनाशिनी देवी गंगा के आज्ञाकारी आठवें पुत्र व महर्षि परशुराम के शिष्य विश्वश्रेष्ठ धनुर्धर देवव्रत के साथ क्या था पिता शांतनु द्वारा अशिर्वाद स्वरूप प्रदान किए गए इच्छा मृत्यु के वचन पर विश्वास धर्मराज युधिष्ठिर के अनुज विश्व के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर गांडीवधर अर्जुन के साथ क्या था गुरू द्रोणाचार्य के प्रशिक्षण से अचूक व मारक बने अपने बाणों पर विश्वास हस्तिनापुर की सभा में दुर्योधन के निर्देश पर दुःशासन द्वारा किए गए अनैतिक कृत्य के समय युधिष्ठिर की विवषता और शकुनी के छल के कारण पारिवारिक वृद्धों व सम्माननीय हस्तिनापुर निवासियों के मध्य अनायास ही द्यूतक्रीड़ा का भाग बन अपनों के कारण पराजित होकर खड़ी असहाय पांचाली के साथ क्या था | स्वयं के आत्म सम्मान की रक्षा हेतु सभा में अनुपस्थित राखीबंध भ्राता लीलाधर द्वारा लाज बचाए जाने का विश्वास गांधार कुमार मामा शकुनी व हस्तिनापुर के स्वघोषित युवराज पितृव्य अनुज दुर्योधन के छल और नेत्रहीन काका महाराज धृतराष्ट्र की इन दोनों को पुत्रमोह की मौन सहमति के कारण अनेकानेक बार त्रस्त हुए पाण्डवों के साथ क्या था करूवंशीय अपने पिता दिवंगत महाराज पाण्डू का राज्य पुनः प्राप्त कर लेने का विश्वास महायुद्ध के पूर्व वासुदेव से सहायता भेंट के समय दुर्योधन के उपरांत पहुँचे धनंजय के साथ क्या थ अस्त्र शस्त्र प्रशिक्षित मानवीय नारायणी सेना की अपेक्षा देवरूप मुरलीधर सारथी के सानिध्य पर विश्वास आज आपने पढ़ा विश्वास । अगामी लेख में पढ़िएगा विश्वास का परिणाम ।