वो आर्यावृत्त से भारत नाम अपनाने वाले वृहद देश का एक युद्ध था जिसमें सब कुछ महान था | जिसमें सब कुछ महा था महादेश, महायुद्ध, महायुद्धक्षेत्र, महायोद्धा, महाअस्त्र-शस्त्र, महाप्रतिशोध, महाक्षमा, महाछल, महापराक्रम, महावरदान, महाश्राप, महारथी, महाराजनीति, महाक्रूरता, महाआत्मा महापरमात्मा, महारूप, महाज्ञान, महाज्ञानी, महा अज्ञान, महाअज्ञानी महावीरता, महादुष्टता, महावृद्ध, महागुरू, महाशिष्य, महापुरूष,
महादानी, महाषड़यंत्र, महाषड़यंत्रकारी, महाविश्वास महाविश्वासघात, महादिव्य दृष्टि, महानेत्रहीनता, महालोभ, अपनों से महातिरस्कार, अपनों पर महाअविश्वास, अपरिचितों से महाअपनत्व, अपरिचितों पर महाविश्वास, संबंधियों से महाशत्रुता, अपरिचित से महामित्रता, महाशक्तिशाली, महास्वार्थ, महापरमार्थ, महाविनाशक, महारक्षक, महाकपट इन सब महा झंझावाती विभूषणों के मध्य मात्र तिनके सा एक किशोरवय कनिष्ठतम योद्धा था अभिमन्यू जिसने सर्वानुज होते हुए भी रणभूमि में ही आत्मबोध कर लिया था युद्धक्षेत्र में डटे अपने पक्ष के महाविभूषणों के मस्तक पर उभर आई पराजय के भय की अदृश्य रेखाओं को आज जब छलपूर्वक कहीं और ले जाए गए हैं जगदीश्वर लीलाधर मामा के रथ पर आरूढ़ विश्वश्रेष्ठ धनुर्धर पिता

तो कौन तोड पाएगा युधिष्ठिर को बंदी बनाने रचे गए शत्रु षड़यंत्र के इस भाग की व्यूह रचना को कौन दिखाएगा विजय मार्ग अपने पक्ष के महाविभूषणों को कौन करेगा देव सेना के मान मर्यादा प्रतिष्ठा की रक्षा महाविभूषणों के इस पक्ष में मात्र वे दोनों ही तो जानते हैं शत्रुपक्ष द्वारा रचित व्यूहरचना का भेदन यदि आज न भेदी गई षड़यंकारी शत्रुओं द्वारा रचित ये व्यूहरचना तो स्वतः ही पराजित हो जाएगी धर्मसेना धर्मराज पक्ष के महारथियों और महायोद्धाओं के मान सम्मान और प्रतिष्ठा की रक्षा करने अपनी सेना को पराजय से बचाने बढ़ चला महाषड़यंत्रकारियों की व्यूहरचना भेदने वो उत्साही नवयोद्धा अपने परिचितों से आज्ञा लेकर महाराथी नरश्रेष्ठ पिता और सारथी जगदीश्वर नारायण के अतिरिक्त एक वो ही तो है जो उस षड़यंत्र को कुछ समय के लिए टाल सकता है। जबकि उसे भी ज्ञात था कि वो पूर्णतः कभी नहीं भेद पाएगा महाकपटी शत्रुओं की व्यूहरचना को प्रत्येक द्वार के भेदन पर अपनों के साथ रहने के वचन के विश्वास के सहारे ही तो आगे बढ़ा और बढ़ता ही चला गया वो वीर बिना पीछे देखे चक्रव्यूह के एक एक द्वार को खोलता महाछली षड्यंत्रकारी शत्रुओं की व्यूहरचना को भेदता अपनी अर्द्धविजय पर रहस्यमय रूप से प्रसन्न होता वो कनिष्ठतम किशोरवय वीर योद्धा पहुँच गया षड्यंत्रकारी चिर परिचित सत्ता लोभी शत्रुओं के मध्य शत्रुओं के मध्य पहुँचकर जब देखा उसने पलटकर अपने पक्ष के महारथियों को महायोद्धाओं को तो कोई भी नहीं था उसके समक्ष उन अपनों में से जिनके भरोसे और जिनको पराजय से बचाने के लिए ही तो वो यहाँ तक पहुँचा था |

जब उसने देखा चारों ओर तो घिरा हुआ पाया अपने आप को अकेला षड्यंत्रकारी चिर परिचित शत्रुओं से अनेकानेक शत्रु सैनिकों की दीवारों के भीतर से बहुत दूर दिखाई दे रहे थे उसे वो अपने जिन्होंने विश्वास दिलाया था उसे प्रत्येक षड़यंत्रकारी द्वार में प्रवेश के समय साथ रहने का एक एक द्वार के बंद होते शत्रुओं के बीच घिरते देख उसके अपनों को तथा उस वीर को स्वयं भी ज्ञात था कि अब कभी जीवित नहीं लौट पाएगा वो वीरादित्य एक साथ कई शत्रुओं ने हर ओर से किया प्राणघातक प्रहार रथचक्र उठाए उस असहाय वीर शिरोमणी पर शत्रुओं के झंझावाती प्रहारों के द्वत झंझावातों के मध्य तिनके सा अभिमन्यू अकेला ही लड़ता रहा अपनों के लिए अपनों के मान सम्मान प्रतिष्ठा के लिए स्वयं के क्षत विक्षत होने तक स्वयं के पूर्णरूपेण धराशायी होने तक स्वयं की वीरगति प्राप्त होने तक बाणों, खड़गों और अनेकानेक अस्त्रों के अनगिनत नियमविरूद्ध प्रहारों से रक्त रंजित वो वीरतम योद्धाn रथचक्र चलाकर भी नहीं बचा सका वो स्वयं को क्षत विक्षत होने से क्योंकि वो दोषी था अधूरी व्यूह रचना सुनने का वो दोषी था अपनी सेना को अपने संबंधियों को पराजित होने से बचाने के दिव्य विचार का वो दोषी था अपनों के विश्वास के संरक्षण में आगे बढ़ने का वो दोषी था अपनों के यशस्वी भव आशिर्वाद के संरक्षण में आगे बढ़ने का प्रत्येक महाभारत में उतरे शकुनी से षड़यंत्रकारी, कर्ण से महादानी महारथी और विवश महात्माओं से घिरे निर्दोष अभिमन्यू को
युद्ध में वीरगति प्राप्त करनी ही होती है। अभिमन्यू युद्ध विजय के उल्लास का आनंद लेने के लिए नहीं जन्मा है उसका जन्म तो अधर युद्ध में वीरगति प्राप्त करने के लिए हुआ है युगों युगों तक के लिए उसे यश अवश्य प्राप्त होगा परंतु उस यश को दृष्टिगत करने वो स्वयं धरा पर उपस्थित नहीं होगा प्रत्येक महाभारत में शत्रुओं के बीच ऐसे ही मारा जाता रहेगा निर्दोष भावुक सरल व सब पर विश्वास करने वाला दूसरों के लिए प्राणों की आहूती दे देनेवाला निश्छल निष्कपट निष्कलंक निरपराध निर्दोष अभिमन्यू |